Friday 23 June 2017

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है-18
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आधुनिकता के हवन में संस्कारों की आहुति !
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     एक तरफ अपनी संस्कृति बचाने की बातें की जा रही हैं,वहीं दूसरी तरफ आधुनिकता के नाम पर अपने संस्कारों को तिलांजलि दी जा रहीहै!शर्मोहया,जिसका कि हमारी संस्कृति और संस्कारों में अहम स्थान है,और जिसके गहरे अर्थ भी है, आज दम तोड़ते से लग रहे हैं!

     मुझे क्षमा करें,किन्तु ये आज आम नज़ारा है कि हम अपने समाज की किसी शादी या अन्य समारोह में शिरकत करने जाएं तो वहां मेकप,फैशन,और तथाकथित फोटो सेशन के नाम पर बेहूदा प्रदर्शन सा होता है!
    जब तक दूल्हा-दुल्हन स्टेज पर आते हैं उसके पहले,और बादमें भी निकट के सगे संम्बंधी पति-पत्नी, शुद्ध धंधेबाज़ फोटोग्राफर के निर्देश पर उलूल-जुलूल पोज़ देते हुए फोटो खिंचवाते रहते हैं,जबकि सामने लगी कुर्सियों पर तमाम सगे-सम्बन्धी, बुजुर्ग व अन्य लोग बैठे होते हैं!निर्लज्जता का ऐसा प्रदर्शन सिर्फ फ़िल्म वालों को या भांडों को ही शोभा दे सकता है,हमको कतई नहीं ! यही हाल दूल्हा-दुल्हन का भी है।फोटोग्राफर उनको भी स्टेज पर ही सबके सामने उलूल-जुलूल निर्देश देता रहता है,और वे भी तमाम लोगों के सामने मजबूरीवश बेहया होते रहते हैं!
     बहुएं,ससुराल में बेशक बेटी के समान ही मानी जानी चाहिए,किन्तु वे ससुराल-पिहर के उपस्थित तमाम लोगों,बुजुर्गों के सामने अपने  पति को गलबहियां डाल कर,उटपटांग पोज़ बना कर खुलेआम फोटो खिंचवाएं,तो फिर हमें अपने संस्कारों का पुनर्निरीक्षण ज़रूर कर लेना चाहिए!
     आजकल चल रही तथाकथित "प्री वेडिंग शूट" भी शुद्ध धंधेबाज़ फोटोग्राफरों के मन की उपज मात्र है,जिसमें हमारी शर्मोहया तार-तार हो रही है और फोटोग्राफरोकी जेबें भर रही है!

     ये सारे के सारे चोंचले देख कर ऐसा लगता है जैसे हमारे समाज में भी हीरो और हीरोइन बनने को संस्कारी आत्माएं मचल पड़ी है!मुझे क्षमा करें,किन्तु हीरो-हेरोइन बन कर फोटो शूट करने की जगह कमसे कम शादी या अन्य कोई पारिवारिक,सामाजिक समारोह तो किसी भी तरह से मुफीद नहीं है।अगर किसी की आत्माएं ऐसे ही फोटो शूट करवाने तथा फैशन के नाम पर तार-तार कपड़े पहनने को और फिर फेसबुक-इंस्टाग्राम पर फोटो अपलोड करने को मचल ही रही है तो कृपया इस देश में और विदेश में बहुत से पर्यटक स्थल हैं,जहां अपनी निर्लज्ज ख्वाहिशें पूरी की जा सकती है!और रही बात फेसबुक और इंस्टाग्राम की,तो वहां ऐसे बेहुदे फोटो अपलोड कर आपको आठ-दस लाईक और दो-चार झूठे कमेंट के अलावा मिलना भी क्या है?हीरो-हेरोइन को इन सबके लिए लाखों-करोड़ों मिलते हैं,वो उनका धंधा है,लेकिन आपको इस बेहूदगी का,इस निर्लज्जता के लिए कोई फूटी कौड़ी भी देता हो तो बताओ?

    महावीर के अनुयायियों,जागो,आंखें खोलो।महावीर प्रभु ने तो त्याग,संयम और मुक्ति के लिए वस्त्र भी त्याग दिए और पूजनीय बन गए,जबकि हम आज शर्मोहया,संस्कार,और क्षमा करें, (फैशन के वशीभूत हो) कुछ हद तक वस्त्र भी त्याग कर मात्र निर्लज्जता और बेशर्मी के नितनये कीर्तिमान बना कर ना जाने कौनसे उदाहरण प्रस्तुत करने पर तुले हुए हैं!हदों से बाहर जाना और अपने संस्कारों का कत्ल करना,खुदके पतन की नींव रखने के समान है!
    मैं जानता हूँ कईं "अत्याधुनिक" आत्माएं,जो आधुनिकता और बेशर्मी में कोई भेद नहीं करते और दोनों को पर्यायवाची ही मान चुके हैं ,मुझे दकियानूसी ठहराएंगे! मुझे अपने संस्कारों के पक्ष में ये आक्षेप झेलना भी मंजूर है!
     अपन ने तो आईना दिखा दिया! अब आप चाहें तो इस आईने को तोड़ दें या फिर इसका प्रतिबिम्ब बदल दें! इससे ज्यादा कुछ और बोलूंगा तो फिर आप ही बोलोगे कि बोलता है!
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लेखक- अशोक पुनमिया
लेखक-कवि-पत्रकार-ब्लॉगर 
सम्पादक-'मारवाड़ मीडिया'