हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है-16
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महावीर की वाणी समझ लेते तो मोदी का झटका
ना लगता !
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मोदी ने बहुत ही जोर
का झटका दिया है.अच्छे-अच्छे तीसमारखां जड़ों से उखड गए.बड़े-बड़े बरगद,पीपल हिल
गए.काले धन की पिच पर धुंआधार बेटिंग करने वाले दस-बीस हज़ार की सेटिंग करने की
स्थिति में आ गए.सेठजी को अचानक दो-चार हजार के भी वांदे हो गए.अच्छे अच्छे धनपतियों
को परिवार सहित बैंकों के बाहर कतार में घंटों लगना पडा.घर में पड़े नोटों के बण्डल
को कहाँ ठिकाने लगाएं,ये चिंता चौबीसों घंटे सताने लगी.शादियों सहित अन्य
भभकेदार-दिखावटी समारोह गले की फांस बन गए.वे 'काली-धोली' लक्ष्मी पुत्र जो सुबह
शाम डिजाईनर वस्त्रों में मंदिर जाकर,धर्म की जाजम पर सबसे आगे बिराजमान हो बोलीयों
के बलबूते चापलूसों द्वारा 'भाग्यशाली-पुण्यशाली' का तमगा पाकर धर्मधुरंधर होने का
भ्रम पाले खुद को सबसे बड़ा धार्मिक समझते रहे,वे आज उसी भगवान् को कोस रहे होंगे कि हे भगवान् हम तो तुझे इतना चढ़ावा चढाते हैं,इतना पूजते हैं,फिर भी तूने हमारी 'वाट' क्यूँ लगा दी! और
भगवान् बेशक मंद मंद मुस्कुरा रहे होंगे,ये सोचते हुए कि 'पगले मैंने कब माँगा था ये सब तुझसे? तू
तो अगर मेरी वाणी सुनने के साथ साथ समझ भी लेता तो आज मोदी भी तेरा कुछ नहीं बिगाड़
सकता था!'
मित्रों,हमने तो
शायद महावीर की वाणी सुनी ही है,किन्तु लगता है मोदी ने तो इसको समझ भी लिया है! महावीर
की वाणी को सुन-समझ कर उसे अमल में लाने वाला हमारा साधू-संत समुदाय आज कितना सुखी
है! क्या मोदी के झटके का उन पर राई रत्ती भर भी असर हुआ है? ठीक है हम सभी साधु-संत
नहीं बन सकते,किन्तु महावीर की वाणी को थोड़ा सा भी अपने जीवन में उतार देते तो
मोदी द्वारा दिए गए झटकों के अलावा भी कईं झटकों से हमेशा ही बचे रह सकते थे!
हर काम में प्रदर्शन
और दिखावे ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है.जिनाज्ञा से विरक्त हो कर धर्म तक को हमने
प्रदर्शन की वस्तु बना कर रख दिया है.प्रभु की भक्ति-पूजा करेंगे तो वो भी पुरे
परिवार के लिए एक सरीखे, महंगे डिजाईनर पूजा के वस्त्रों में! घर में किसी की
मृत्यु हो गयी और उठावना या शोक सभा भी रखी है तो उसमें भी चकाचक एक जैसे डिजाईनर
वस्त्र,जैसे कि घर में शोक का नहीं बल्कि आनंद का माहोल हो! हमारी सोच-समझ,चेतना-चिंतन
का स्तर कहाँ पहुँच गया,इसकी किसी को फ़िक्र ही नहीं! भगवान् की पूजा,भक्ति,दर्शन तक
में अहंकारयुक्त धनबल,भ्रष्ट आचरण घुस गया.उस पर तुर्रा ये कि मुझ जैसा तो कोई
भक्त ही नहीं!
मुझे क्षमा करें,मैं
अपने ही समाज के लक्ष्मी पुत्रों पर आई इस विपदा का मजाक नहीं उड़ा रहा और ना ही
खुश हो रहा हूँ.बल्कि मुझे दुःख इस बात का है कि महावीर जैसे प्रभु की संतान हो कर
भी हमें ये सब भुगतना पड रहा है,क्योंकि हमने अपने प्रभु के संदेशों को आचरण में
उतारा ही नहीं और बस ढकोसले ही करते रहे! मोदी की इस मार ने हमें बता दिया है कि
प्रभु महावीर की वाणी को आचरण में ढाले बिना सुखी जीवन जीने का और कोई मार्ग है ही
नहीं.कल्पना कीजिये,आज करोड़ों-अरबों जो एक ही झटके में रद्दी हो गए उसे जुटाने में कितने
लोग, कितने दिन, कितने दुराचरण, कितनी मेहनत, कितने पाप,कितने डर लगे होंगे ! कितने
समझोते,कितने झगडे किये होंगे! कितनी रातों की नींद और कितने दिनों का चैन खोया होगा! किन
किन के पाँव पकडे होंगे,किन किन की गुलामी की होगी! और बरसों बाद जब परिणाम शून्य
तो हालत क्या होगी,हम समझ सकते हैं! ज़रा सोचिये,अगर इसमें से थोड़ा सा वक्त प्रभु महावीर की वाणी को समझने,उसे जीवन
मे उतारने तथा सच्चा जैन बनने में लगा दिया जाता तो फिर जो भी कमाई होती वो एक
नम्बर की ही होती,कभी भी किसी के द्वारा ना लुटी जाने योग्य ही होती,और ना ही दुःख का कारण बनती ! क्योंकि महावीर
की वाणी को समझ कर आचरण में ढालने वाला दो नम्बरी, छुपाने योग्य कमाई कर ही नहीं
सकता! असली भाग्यशाली और पुण्यशाली बनने के लिए प्रभु के दरबार में 'नोटों की गरमी' की नहीं बल्कि आचरण में 'प्रभु महावीर जैसी नरमी' की ज़रूरत होती है.
जैन धर्म का मूल समझ
लें तो इसमें काले धन वाले संग्रहों, भभकों, दिखावों, आडम्बरों, का कहीं कोई स्थान है
ही नहीं. हमारे वन्दनीय साधू संतों को देख कर भी अगर हम ये नहीं समझ पाते हैं और अपने
धन के प्रभाव से उन्हें भी अपने इन आचरणों में सहभागी बना लेते हैं तो हमें अब
गहरे चिंतन की जरुरत है.
अपन ने जो सोचा-समझा,आपको बता दिया।अब आपको ठीक लगे तो आप भी इस पर विचार करें।मैं और ज्यादा कुछ बोलूंगा तो फिर आप ही बोलोगे कि बोलता है !
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लेखक- अशोक पुनमिया
लेखक-कवि-पत्रकार-ब्लॉगर
सम्पादक-'मारवाड़ मीडिया'
सम्पादक-'मारवाड़ मीडिया'