Tuesday 3 January 2017

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है-17
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    आज मैं जो बात कर रहा हूँ,ये बात भी कोई नयी नहीं है।बल्कि शायद बहुत से लोग जानते भी हैं।हाँ इतना ज़रूर है कि इस पर अमूमन चर्चा नहीं की जाती।
    मैं कईं बार अपने ऐसे परिचितों से मिलता हूँ जो अपनों के ही सताये हुए हैं!सताये हुए ही क्या,बस यूँ समझ लीजिए कि अपनों के ही द्वारा धकियाये हुए हैं! 
    जी हां मैं बात कर रहा हूँ उन लोगों की जिनको खुद के ही भाईयों या काका-बाबाओं ने अपनी पैतृक संपत्ति से बेदखल कर दिया!सारी पैतृक चल-अचल संपत्ति स्वयं ही हड़प बैठे और उतना ही अधिकार रखने वाले दूसरे रिश्तेदार को बिना कुछ दिए बाहर कर दिया!
    मैं अपने समाज के कईं ऐसे बंधुओं को जानता हूँ जो भाड़े की खोली में दो जून की रोटी के लिए भी मशक्कत कर रहे हैं और उनके ही अपनों ने उन्हें अपनी पैतृक संपत्ति से बेदखल कर उन पर स्वयं ने ही कब्ज़ा कर रखा है।और ताजुब की बात तो ये है कि अपनों को पैतृक संपत्ति से बेदखल कर बेघर करने वाले अमूमन हर तरह से समृद्ध-सक्षम है!ऐसे लोग अगर इंसानियत और अपनेपन के नाते चाहें तो इसका उलट भी कर सकते हैं,अर्थात अपनी पैतृक संपत्ति को अपने कमजोर रिश्तेदार को ही दे सकते हैं क्योंकि वे स्वयं के लिए सारा कुछ जुटाने की कुव्वत रखते हैं।लेकिन अफ़सोस कि वे इतना करने के बजाय उनका हिस्सा भी उन्हें नहीं देते और सारा हड़प कर बैठ जाते हैं!
    हो सकता है ये सब कुछ पढ़ते वक़्त आपकी नज़रों के सामने भी बहुत से ऐसे लोग आ रहे होंगे जो अपनों के सताये हुए होंगे! आप ध्यान से देखेंगे तो ये सारे के सारे हड़पु लोग आपको हर तरह से समृद्ध-सक्षम ही मिलेंगे!
    अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा अनुचित कार्य करने वाला किसी भी दृष्टि से महावीर का अनुयायी हो सकता है?महावीर का सच्चा अनुयायी तो प्राणिमात्र के लिए बहुत कुछ न्योछावर करने को तैयार रहता है,दान को पूण्य मानता है,कमजोर की मदद करता है,गैरों को मुसीबत में गले लगाता है,तो फिर आखिर अपने ही भाई,अपने ही रिश्तेदार को घर से बेदखल कर,उसकी संपत्ति हड़प कर,क्या साबित किया जा रहा है?क्या ऐसे लोग जैन धर्म और प्रभु महावीर के अनुयायी होने की योग्यता भी रखते हैं?
    बात कड़वी है,और हड़पु लोगों को चुभेगी भी!चुभनी भी चाहिए,ताकि वे इस चुभन को महसूस करें और अपनी गलती को सुधार कर अपनों को उनका हिस्सा,उनका हक दे कर उनके जीवन को भी बेहतर बनाने में सहायक हो और साधर्मिक भक्ति का वास्तविक अर्थ समझ कर महावीर के सच्चे अनुयायी बन सके।
    अगर आप भी ऐसे हड़पु लोगों को जानते हैं तो इस लेख को वाया-मीडिया उन तक ज़रूर पहुंचाईए,हो सकता है किसी हड़पु का ज़मीर जागृत हो और किसी वंचित को उसका हक़ मिल सके।ऐसा करके आप भी कुछ पूण्य अवश्य ही कमा लेंगे!

    अपन ने जो सोचा-समझा,आपको बता दिया।अब आपको ठीक लगे तो आप भी इस पर विचार करें।मैं और ज्यादा कुछ बोलूंगा तो फिर आप ही बोलोगे कि बोलता है !

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लेखक- अशोक पुनमिया
लेखक-कवि-पत्रकार-ब्लॉगर 
सम्पादक-'मारवाड़ मीडिया'